लेखनी प्रतियोगिता -20-Jun-2022...अमानत..?
सोहन :- क्या हुआ यार ऐसे मुंह लटकाकर क्यूँ बैठा हैं...।
संजय :- क्या बताऊँ यार...एक तो ये मंहगाई... ऊपर से परिवार के बढ़ते खर्चे.. ।
सोहन :- अरे यार ये तो सबके घर का हाल हैं...। चिंता करने से क्या होगा...। सब ठीक हो जाएगा यार...। अभी वो सब छोड़ ले भजिया खा...।
संजय एक भजिया उठाते हुए बोला :- क्या बात हैं... ये गाड़ी इतनी देर क्यूँ रुकी हैं आज...!
तभी पास में बैठा एक बुजुर्ग बोला :- आगे सिग्नल नहीं मिल रहा होगा... या दूसरी लाइन पर डालीं होगी..। ये ट्रैनो का तो रोज़ का किचकिच हैं...। एक तो इतनी भीड़ ऊपर से पता नहीं कौनसे जंगलों में गाड़ी रोक देते हैं...।
सोहन :- अरे काका... लोकल डब्बे का तो ऐसा ही हाल हैं.. । वैसे आप कहाँ जा रहे हो काका..!
बुजुर्ग :- मैं तो आखरी स्टेशन पर उतरूंगा बेटा... हरिद्वार...। तुम लोग कहां जा रहे हो...?
सोहन :- हम तो यहीं बस दो स्टेशन बाद आगरा पर उतर रहे हैं...।
चल यार हम भी थोड़ा नीचे चक्कर मारकर आतें हैं...। कब तक यहाँ भीड़ में बैठे रहेंगे...। चलकर देखें तो माजरा क्या हैं...। आधा घंटा हो गया अभी तक चल नहीं रहीं ये गाड़ी...।
ऐसा कहकर दोनों दोस्त ट्रेन से नीचे उतर गए...। नीचे पहले से ही काफी लोग उतरे हुए थे..।
आस पास कोई स्टेशन नहीं था... गाड़ी एक वीरान... इलाके में खड़ी थीं...। लोग अपने अपने अंदाजे लगा रहे थे की अब चलेगी... इतनी देर में चलेगी...। कुछ देर दोनों दोस्त भी यहाँ वहाँ ऐसे ही लोगों की चर्चा में शामिल हो रहें थे..।
तभी संजय झाड़ियों के पीछे ****करने गया....। इतने में ट्रेन का सिग्नल बजा...। जल्दी जल्दी सभी लोग ट्रेन में चढ़ने लगे...। सोहन ने संजय को आवाज़ लगाई :- अरे संजय... सिग्नल हो गया... आजा... जल्दी...।
संजय :- झाड़ियों के पीछे से वापस आया तो उसके हाथ में एक काले रंग का बड़ा सा बैग था...।
वो देखते ही सोहन ने पुछा :- ये क्या लाया हैं...। किसका बैग हैं..! क्या हैं इसके अंदर..!
संजय :- झाड़ियों के पीछे पड़ा था..!
सोहन :- ठीक हैं... पर हैं क्या इसमें..!
संजय कुछ बोलता इससे पहले ही ट्रेन शुरू हो गई ओर धीमी गति से चलने लगी...।
सोहन :- अरे छोड़ वो सब गाड़ी छुट जाएगी आजा जल्दी..।
लेकिन संजय वहाँ से हिला ही नहीं..।
सोहन :- अरे चल यार... गाड़ी जा रहीं हैं..।
संजय :- तू जा... मैं नहीं आ रहा..।
सोहन :- क्या बक रहा हैं...।
सोहन ने हाथ पकड़ कर संजय को खिंचना चाहा पर संजय ने उसका हाथ झटक दिया..।
सोहन हैरान परेशान होकर उसे चलने के लिए कहता रहा पर तब तक बहुत देर हो गई थी...। गाड़ी अपनी रफ्तार पकड़ चुकी थीं..और वो दोनों उस वीरान जंगल में रह चुके थे..।
गाड़ी के जाते ही सोहन ने गुस्से से संजय को धक्का दिया और कहा :- तेरा दिमाग खराब हो गया हैं क्या बावरे...। इस जंगल में अब खुद भी मरेगा और मुझे भी मरवाएगा...। आखिर चला क्यूँ नहीं तू..।
संजय :- धीरे बोल... और इस बैग में देख..।
सोहन ने गुस्से से उसके हाथ से बैग छीनकर कहा :- हैं क्या इस बैग में आखिर.... जिसकी वजह से तुने गाड़ी छोड़ दी... मैं भी तो देखुँ...।
सोहन ने बैग लेकर उसे खोला तो उसके रोंगटे खड़े हो गए....।उसके मुंह से निकला :- हे भगवान....!
वही दूसरी ओर ट्रेन में वो बुजुर्ग यहाँ वहाँ निगाह घुमाकर सोहन और संजय को ढूंढ रहा था...। लेकिन जब उसे दोनों नहीं दिखे तो पहले तो वो थोड़ा परेशान हो गया फिर मन में ख्याल आया की शायद दूसरे डब्बे में चढ़ गए होंगे...। वैसे भी कोई सामान तो था नहीं उनके पास... जहाँ जगह मिलीं होगी चले गए होंगे...।
वहीं जंगल में...
दोनों दोस्त एक पेड़ के नीचे बैठकर सोचने लगे की क्या किया जाए...।
सोहन :- क्या कहता हैं यार.... क्या करना चाहिए...!
संजय :- मेरी तो खुद समझ नहीं आ रहा.... तू बता...।
सोहन :- पुलिस के पास चले...!
संजय :- उससे क्या होगा यार.... ये जिसकी अमानत हैं.... उस तक तो पहुंचेगी नहीं...। कोई ऐसा रास्ता ढूंढ जिससेे ये जिसकी अमानत है.... उसे मिल जाए...।
सोहन :- अब वो हम कैसे पता लगा सकते हैं यार....। इस वीरान जंगल में कौन और क्यूँ ये नोटों से भरा बैग छोड़ कर गया हैं... हमें कैसे पता चलेगा...।
संजय :- हम पहले यहाँ से घर चलते हैं... फिर बैग को अच्छे से देखते हैं...। शायद अंदर से कोई नाम या पता वगैरह मिल जाए...।
सोहन :- हां ठीक कह रहा हैं..। लेकिन यहाँ से चले कैसे..!
संजय :- पैदल ही चलना होगा... क्योंकि यहाँ से कोई साधन तो मिलने से रहा...।
दोनों दोस्त बातें करते करते चले जा रहे थे..। एक पल को सोहन के दिल में आया की सारी रकम आधी आधी बांट ली जाएं...। पर संजय ने मना कर दिया...। क्योंकि वो इस तरह किसी की अमानत को इस्तेमाल नहीं कर सकता था...।
कुछ घंटे भर की पैदल यात्रा के बाद सोहन को एक बाईक सवार दिखा..। उन दोनों ने उससे लिफ्ट मांगी और अपने घर सुरक्षित पहुँच गए...। घर आकर उन्होंने सारा बैग खाली किया.. एक एक गड्डी जांची.. बैग जांचा पर उनको कुछ नहीं मिला..।
आखिर कार संजय और सोहन ने एक फैसला लिया..। उन दोनों ने वो सारा पैसा आधा आधा आपस में बांट लिया और दोनों ने शहर के बैंक में जाकर जमा करा दिया...।
उन दोनों को जब भी जरूरत पड़ती थी तब वो उसमें से पैसे निकाल देते थें... लेकिन इंतजाम होतें ही वापस उतनी ही रकम जमा भी कर देते थें..। जमा रकम से बैंक से मिलने वालें ब्याज के रुप में...। इस तरह उनका गुजारा भी चलता रहा और जिसकी अमानत थी वो भी सही सलामत पड़ीं थीं...। आखिर वो अमानत किसकी थीं... ये आज भी उन दोनों के लिए रहस्य ही था...।
Seema Priyadarshini sahay
22-Jun-2022 11:05 AM
बहुत खूबसूरत
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Pallavi
21-Jun-2022 05:00 PM
Nice 👍
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Dr. Arpita Agrawal
21-Jun-2022 12:48 PM
Very nice 👌👌👌
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